उत्तराखंड

कैण्डुल में वटसावित्री व्रत एवं भैंसरौ कौतिक धूमधाम से संपन्न हुआ

द्वारीखाल। नयार नदी के किनारे द्वारीखाल और कल्जीखाल ब्लॉक की सीमा पर भैंसरो नामक स्थान पर कल 6 जून के दिन वट सावित्री अमावस्या के अवसर पर मेले का आयोजन किया गया। जिसमें बड़ी संख्या में स्थानीय लोग जनप्रतिनिधि एवं सामाजिक कार्यकर्ता सम्मिलित हुए। यह एक प्राचीन मेला है, सुहागिन स्त्रियां यहां पर आकर नयार नदी में स्नान कर माता सती सावित्री के दर्शन और पूजा कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करती हैं।

कैंडुल तल्ला के पूर्व प्रधान 81 वर्षीय गब्बर सिंह रावत ने बताया कि सती सावित्री का मंदिर पहले वर्तमान मंदिर के ठीक सामने बरगद के पेड़ के नीचे था। भयंकर बाढ़ और नदी का रास्ता बदलने के कारण प्राचीन मंदिर बह गया था। वर्तमान समय में मौजूद मंदिर का निर्माण कैण्डुल तल्ला  निवासी स्वतंत्रता सेनानी स्वo तुला सिंह रावत ने करवाया। यह मेला 1957 में शुरू हुआ, सन 2000 के बाद मेले में लोगों की भीड़ आना कम हो गया। पिछले 2 सालों से एक फिर मेले की रौनक लौटने लगी है।

अमावस्या की पहली रात को जात की रात कहते हैं, पूरी रात ढोल दमाऊ के साथ मण्डाण लगा रहता है। सन् 2000 से पहले तक अमावस्या की पहली रात कैण्डुल, कैन्डुल तल्ला, डल, ग्वाड़ी, चोपड़ा आदि गावों के लोग ढोल दमाऊ के साथ नाचते हुए मंदिर में इकट्ठे होते थे, रातभर हर गाँव का अलग मंडाण चलता था। लेकिन अब रात को कैण्डुल के लोग ही जाते हैं। नयार नदी के किनारे दुकानें दुकानें लगी रहती थी,लोग हजारों की संख्या होते थे।

गब्बर सिंह रावत ने आगे बताया कि पहले मंदिर नयार नदी के दूसरी तरफ बड़ के पेड़ के नीचे था। वहां पर जात की रात को दीपक अपने आप जलने लगता था। नदी 1970 से पहले नदी का रास्ता बदलने और बाढ़ आने के कारण प्राचीन मंदिर बह गया था, आज भी बरगद के पेड़ के निशान वहां पर मौजूद हैं।कुछ वर्षों से मेले में भंडारे का आयोजन भी किया जा रहा है।

इस वर्ष मेले में द्वारीखाल के ब्लॉक प्रमुख महेंद्र सिंह राणा और कल्जीखाल ब्लॉक प्रमुख श्रीमती बीना राणा एवं अन्य सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हुए।

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