उत्तराखंडपौड़ी

गढ़वाल के चाणक्य वीर पुरिया नैथाणी…

✍️©️ प्रशांत मैठाणी की कलम से

आदिकाल से ही गढ़वाल वीरों की भूमि रही है। यहां अनेक शूरवीर पैदा हुए और होते रहेंगे। वीरों के हम माधो सिंह भंडारी, लोदी रिखोला, तीलू रौतेली, बलभद्र सिंह, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली, गबर सिंह, दरम्यान सिंह, रायफल मेन जसवंत सिंह सहित अनेक असाधारण वीरों के नाम और गाथाएं सुनते और सुनाते हैं। इन वीरों में अक्सर एक नाम की चर्चा जैसी होनी चाहिए वैसी होती नहीं है। इन्हीं वीरों में एक नाम आता है वीर पुरिया नैथाणी का!! वीर के साथ साथ विलक्षण प्रतिभा के धनी वीर पुरिया नैथाणी!

मध्यकालीन भारतीय इतिहास में कूटनीति के जादूगर और गढ़वाल के चाणक्य के नाम से सुशोभित पुरिया नैथाणी जिन्हें साहित्य में पूर्णमल भी कहा गया है। वीर पुरिया का जन्म अगस्त 1648 ई. में तत्कालीन गढ़वाल रियासत के पट्टी मनियारस्यूं के नैथाणा गांव (वर्तमान गढ़वाल जिला) में हुआ।

 

गढ़वाल राजा के तत्कालीन मंत्री डोभाल द्वारा वीर पुरिया के पिता गोंडु नैथाणी से उसे गोद लेने का आग्रह किया गया, जिसे वीर पुरिया के पिता ने अस्वीकार किया, पुनः मंत्री डोभाल ने उस बालक के युवा होने पर अपनी पुत्री के विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे वीर पुरिया के पिता ने मान लिया। उस दिन से वीर पुरिया राजदरबार के करीबियों में हो गए। उनकी शिक्षा दीक्षा, पठन पाठन का विशेष ध्यान रखा गया।

 

जब वीर पुरिया युवा हुए तो उसी दौरान भारत पर औरंगजेब का शासन प्रशासन चल रहा था। उसने इसी दौर में भारत में पुनः हिंदुओं पर जजिया कर लागू कर दिया। गढ़वाल के प्रथम सासंद और लेखक डॉक्टर भक्त दर्शन जी अपनी पुस्तक गढ़वाल की दिवंगत विभूतियों में लिखते हैं इस कर से प्रजा पर बुरा असर पड़ा, खासकर गढ़वाल जनता भूख से मरनी लगी, क्योंकि जनता से अनेक कर वसूल कर दिल्ली भेजा जाने लगा। जजिया कर से गढ़वाल रियासत को मुक्ति के लिए तत्कालीन गढ़वाल के राजा ने अपनी रियासत की ओर से वीर पुरिया नैथाणी को दिल्ली दरबार में भेजा। वीर पुरिया नैथाणी को भेजने का मुख्य कारण उनकी अरबी और फारसी भाषाओं पर अच्छी पकड़ होना और साथ ही उनकी चतुरता!

 

माना जाता है कि वीर पुरिया नैथाणी 1680 में दिल्ली औरंगजेब के समक्ष प्रस्तुत हुए, तब उन्होंने गढ़वाल की गरीबी और हालत का वर्णन किया। इस वर्णन ने दौरान औरंगजेब ने वीर पुरिया से कहा हमने तो सोने चांदी के पहाड़ सुने थे, जिस पर वीर पुरिया ने उन्हें अपने हाजिर जवाबी के माध्यम से समझाया। इस प्रकार से गढ़वाल रियासत जजिया कर से मुक्त हो गई. भक्त दर्शन जी इस यात्रा को वीर पुरिया की दूसरी यात्रा बताते हैं इसके उपरांत दिल्ली दरबार में वीर पुरिया नैथाणी को श्रीनगरिया जुन्नारदार (जनेऊवाला ब्राह्मण) के रूप में विशेष पुरस्कार मिला। वे लिखते हैं प्रथम यात्रा के दौरान वीर पुरिया नैथाणी ने कोटद्वार के कुछ हिस्से जिसे सैयद वंशियों ने कब्जा लिया था को मुक्त कराया।

 

उत्तराखंड के इतिहास में चन्द वंश के समय गैंडा गर्ती (गैंडा उपद्रव) और पंवार वंश के समय कठैत गर्ती (कठैत उपद्रव) बहुत चर्चा होती है। राज परिवार, मंत्रियों, रानियों के भाइयों की इस कूटनीतिक लड़ाई के कारण जनता की दुर्दशा हो गई। गढ़वाल रियासत में कठैत गर्ती भी का भी कुछ ऐसा ही काला अध्याय है। इन्हें पांच भाई कठैत कहा गया। मंत्रियों और कठैतों की लड़ाई लगभग 2 सालों तक चली। कठैतों ने मंत्री शंकर डोभाल और वजीर गजे भंडारी की हत्या कर दी। वे राजकुमार भी मारने के फिराक में राजधानी खंगाल रहे थे। पर रानी को जब इस बात की भनक लगी कि राजकुमार के हत्या का षडयंत्र हो चुका है, तो वे राजकुमार को वीर पुरिया नैथाणी के सुपुर्द कर चुकी थी राजकुमार वीर पुरिया नैथाणी के साथ नैथाणा गांव में सुरक्षित रहा।

 

मंत्री और कठैतों ने कुछ महीनों तक शासन प्रशासन भी चलाया। गढ़वाल अराजकता के दौर में चला गया था अनेक कर प्रजा पर लगा दिए गए, जिससे जनता त्रस्त हो गई। मंत्री और कठैतों के मकड़जाल से वीर पुरिया नैथाणी ने गढ़वाल को बाहर निकाला। इन कूटनीतिक लड़ाइयों पर अनेक लोक कथाएं भी प्रचलित हैं। माना जाता है कि कठैत उपद्रव के बाद जब वीर पुरिया नैथाणी श्रीनगर पहुंचे तो उन्होंने योग्य मंत्री शंकर डोभाल की स्मृति में शंकर मठ का निर्माण कराया, हालांकि शंकर मठ 2013 की त्रासदी में बह गया है।

 

चंद वंश के महान राजा जगत चन्द ने जब 1709 में गढ़वाल पर आक्रमण किया तो वीर पुरिया ने कूटनीतिक सूझबूझ से श्रीनगर को चंद वंश से बचा लिया। चंद वंश के संपूर्ण कार्यकाल में जगतचंद के कार्यकाल को चन्द वंश का स्वर्ण काल कहा जाता है। उनके पास विशाल सेना थी। किंतु बिना लड़े ही अपनी वाक् चतुराई से युद्ध टाल दिया, डॉक्टर भक्त दर्शन जी लिखते हैं चन्द राजा ने उन्हें ही ब्राह्मण मानकर श्रीनगर दान में दे दिया। इस कार्य में मंत्री शंकर डोभाल ने भी पुरिया नैथाणी का सहयोग किया। ऐसे ही अनेक अवसरों पर वीर पुरिया नैथाणी ने गढ़वाल रियासत और राज परिवार को बचाया।

 

उन्होंने गढ़वाल और कुमाऊं के बीच सीमा बनाने वाली नदी रामगंगा पर एक किला बनाने का प्रस्ताव तत्कालीन गढ़वाल राजा को दिया जिसे राजा द्वारा सहर्ष स्वीकार किया गया। किला लगभग 2 वर्षों में बनकर तैयार हुआ। गढ़वाल और कुमाऊं पर गोरखा आक्रमण के दौरान यह किला नष्ट कर दिया गया, हालांकि किले के कुछ चिन्ह आज भी विद्यमान हैं। राजा प्रदीप शाह ने इस किले का नाम नैथाणा गढ़ रखा था।

 

112 साल के वीर पुरिया 1760 के हरिद्वार कुंभ में शामिल होने गए और उसके बाद घर नहीं लौटे। 1760 के हरिद्वार कुंभ के अंतिम दिन भगदड़ हुई जिसमें हजारों लोग मारे गए, माना जाता है कि इसी दौरान उनका भी निधन हो गया। डॉक्टर भक्त दर्शन अपनी पुस्तक गढ़वाल की दिवंगत विभूतियों में लिखते हैं कि कुछ लोगों का अनुमान है कि राजा भर्तृहरि की तरह वीर पुरिया नैथाणी आज भी जीवित हैं।

 

वीर पुरिया नैथाणी, नैथाणी जनों के साथ साथ पूरे गढ़वाल के युग पुरुष हैं! ऐसे वीर पुरुष शताब्दियों में पैदा होते हैं। नई पीढ़ी को भी वीर पुरिया नैथाणी जैसे महापुरुषों की जानकारी होनी चाहिए। ऐसे वीरों को स्मरण होता रहना चाहिए। वीर पुरिया नैथाणी को नमन करते हुए उन्हें प्रणाम करता हूं।

 

फोटो वीर पुरिया नैथाणी स्मारक, नैथाणा, जिला पौड़ी गढ़वाल

 

लेखन ✍️©️ प्रशांत मैठाणी

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