प्रयाग महाकुंभ में दुनिया के कोने कोने से आ रहे हैं श्रद्धालु
प्रयागराज। प्राचीनकाल से ही भारतभूमि से समूचे विश्व को एकसूत्र में बांधने और प्रेम का संदेश दिया जाता है। इसका जीता जगता उदाहरण महाकुंभ मेला है, जिसमें देश विदेश से असंख्य श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। परमार्थ निकेतन शिविर में साध्वी भगवती सरस्वती जी के दिव्य मार्गदर्शन में विश्व के विभिन्न कोनों से आए भक्तों ने संगम के पवित्र जल में आस्था की डुबकी लगाई। यह दृश्य वसुधैव कुटुम्बकम् (पूरी दुनिया एक परिवार है) का संदेश दे रहा हैं।
संगम की धरती पर आयोजित महाकुम्भ पूरे विश्व के लिए हैं, श्रद्धालु यहां से अपने दिलों में एकता, भाईचारे और विश्व बंधुत्व का संदेश लेकर जा रहे हैं। संगम की पवित्र धरती पर, जहां लाखों लोग एक साथ एकजुट होकर आध्यात्मिक शुद्धि के लिए स्नान कर रहे हैं, वहां विभिन्न जाति, भाषा, और राष्ट्रीयता के लोग मिलकर एकता, श्रद्धा और भक्ति का अद्भुत संदेश आने वाली पीढ़ियों को दे रहे हैं।
महाकुंभ मेला केवल एक धार्मिक अवसर ही नहीं, बल्कि मानवता का महापर्व है। यह आयोजन भारतीय संस्कृति की उन प्राचीन परंपरा को दर्शाता है जो सभी को स्वीकार करने और गले लगाने का संदेश देती हैं। भारत की संस्कृति में हर व्यक्ति का सम्मान है, और यही संस्कृति महाकुंभ के इस दिव्य संगम में जीवंत रूप में दिखाई दे रही हैं। यहां पर लोग अपने भेद-भाव को भूलकर केवल श्रद्धा और आस्था के रंग में रंगे हुए हैं।
कुंभ मेला का यह संदेश स्पष्ट रूप से सबको एकजुटता, प्रेम और सामूहिक शांति की ओर प्रेरित करता है।
संगम के जल में जितने भी श्रद्धालु डुबकी लगाते हैं, चाहे उनका रंग, जाति, लिंग, भाषा या राष्ट्रीयता कुछ भी हो, वह सब एक समान हैं। जल का कोई रंग नहीं होता परन्तु वह प्रत्येक श्रद्धालु के हृदय में शांति, प्रेम और आस्था का रंग भर देता है। यह दृश्य भारतीय समाज की विविधता में एकता का प्रतीक है, जहां हर कोई अपने आस्था की डुबकी लगाकर एक ही लक्ष्य की ओर बढ़ते हंै।
परमार्थ निकेतन शिविर में विभिन्न देशों से पर्यटक और श्रद्धालु संगम में डुबकी लगाने हेतु आ रहे हैं। साध्वी भगवती सरस्वती जी के साथ विश्व के अनेक देशों से आये श्रद्धालुओं ने आस्था की डुबकी लगाते हुये कहा कि भारत की आध्यात्मिकता और यहाँ की संस्कृति बहुत ही विशेष है। यहाँ आकर एक नई ऊर्जा और शांति मिली रही हैं। भारत में विविधता और एकता का अद्भुत संगम है, वह कहीं और नहीं देखने को मिलता।
साध्वी जी ने कहा कि भारत की संस्कृति ने हमेशा से सभी को स्वीकार किया है और यही संदेश महाकुंभ मेला की इस पवित्र धरती पर स्पष्ट दिखायी दे रहा है। महाकुंभ मेला का यह अद्भुत दृश्य हम सभी को यह संदेश देता है कि हम चाहे कहीं से भी हों, हमारी श्रद्धा और आस्था ही हमें एक साथ जोड़ती है। यहाँ आने वाले सभी श्रद्धालुओं ने, चाहे वह भारत के हों या विदेश से आए हों, संगम के जल में डुबकी लगाकर एक साथ यह संदेश दिया कि धर्म, संस्कृति और भक्ति का कोई रंग, जाति या सीमा नहीं होती।