संजय दीक्षित
नई संसद का पहला सत्र 24 जून से शुरू हो रहा है । 26 जून को लोकसभा के लिए स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पद के लिए चुनाव होगा । परम्परा के अनुसार डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया जाता है । परन्तु पिछली लोकसभा में कोई भी अधिकृत विपक्ष का नेता नहीं था क्योंकि उसके पर्याप्त संख्या में लोकसभा में सदस्य नहीं थे । शुरू-शुरू में जनता दल (यूनाइटेड) ने रेलवे और वित्त मंत्रालय की मांग की थी, तेलगुदेशम ने स्पीकर का पद चाहा था । परन्तु भाजपा स्पीकर का पद अपने पास रखना चाहती है । असल में किस सदस्य को निष्कासित करना या किसी दल में टूटन की स्थिति में कौन असली पार्टी है, किसके पास चुनाव चिन्ह रहेगा, स्पीकर तय करता है
पिछले दिनों हुई बैठक में जिसमें एन.डी.ए. के सहयोगी दलों के सदस्य थे, उन्होंने सर्वसम्मति से स्पीकर पद पर भाजपा के चुनने का अधिकार दे दिया है । भाजपा ने उदारता दिखलाते हुए डिप्टी स्पीकर का पद अन्य सहयोगी दलों को देना तय हुआ है । ऐसी स्थिति में विपक्ष स्पीकर के लिए अपना उम्मीदवार उतार सकती है, यद्यपि संख्या बल को देखते हुए उसका जीतना असंभव है । असल में स्पीकर का आसन बहुत जिम्मेदारी का होता है। सभी सदस्यों को उसके प्रति उदारता दिखलानी चाहिए । परन्तु इस चुनाव में दोनों पक्षों की ओर से जैसा प्रचार हुआ, उसे कड़वाहट और बढ़ गई और विपक्ष अपना उम्मीदवार जरूर उतारेगी । यद्यपि उसके जीतने के कोई चांस नहीं है, फिर भी इससे स्पीकर पद की गर्म में तो कमी आयेगी ही ।
असल में शायद भाजपा पुन: ओम बिरला को चुनना पसंद करे और डिप्टी स्पीकर के लिए तेलुगु देशम की किसी महिला को यह पद देना चाहेंगे । चन्द्रबाबू नायडू की पत्नी दग्गुबाती पुरंदेश्वरी का नाम स्पीकर पद के लिए लिया जा रहा था, पर वे इतनी सीनियर हैं कि डिप्टी स्पीकर का पद शायद ही स्वीकार करें । जब कोई दल टूटता है तो स्पीकर का निर्णय अहम हो जाता है । महाराष्ट्र में शिवसेना की टूटने पर स्पीकर ने अपना फैसला डाले रखा, और चाहा कर भी सुप्रीम कोर्ट इसमें दखल नहीं दे सका कि यह आरोप न लगे कि स्पीकर के अधिकार का सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण किया है ।
यूं कहने के लिए यह एन.डी.ए. की सरकार है परन्तु असल में यह भाजपा की ही सरकार है । मंत्री पद के बंटवारे से यह बात बिल्कुल स्पष्ट हो गई है । असल में जे.डी.यू. के 12 और तेलुगु देशम के 16 सदस्यों के अलावा शेष दल के मात्र एक-एक सांसद हैं और सभी को मंत्री पद मिल गये हैं । वे किस बलबूते पर बगावत कर सकते हैं । भाजपा 240 सीटें जीतकर बहुमत के आंकड़े से 32 काम हैं । परन्तु अनेक स्वतंत्र उम्मीदवारों ने भाजपा का समर्थन किया है । ऐसे में अन्य दलों में नरेंद्र मोदी की पर्सनेलिटी के बराबर कोई टिक ही नहीं सकता । इस कारण इस तीसरे कार्यकाल में भी मोदी जी उसी तत्परता से अपना लक्ष्य पूरा कर सकेंगे, जैसे वे पिछले कार्यकालों में कर चुके हैं । असल में 400 पर का नारा और भाजपा को 370 के नारे ने लोगों में उदासीनता भर दी थी । फिर इस भयंकर गर्मी में बहुत से भाजपा के समर्थक वोट डालने गये ही नहीं । इसी कारण इस बार वाराणसी से नरेंद्र मोदी जी को उतने मतों से बढ़त नहीं मिली जितने पहले और दूसरे कर्यकाल के दौरान मिली थी ।
मोदी का करिश्मा ही कुछ ऐसा है, कि लोग अपने को मोदी का परिवार मानते हैं । फिर उनकी कर्मठता और निष्ठा के सामने कोई भी विपक्ष का नेता टिक नहीं पाता । विपक्ष वैसे भी खंडित है, तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल में अकेले चुनाव लड़ा । मायावती ने विपक्ष को ज्वाइन ही नहीं किया यद्यपि इस बार लोकसभा में उनका कोई उम्मीदवार नहीं है । असल में जिस तेजी से विभिन्न क्षेत्रों में देश में विकास हो रहा है, उसको देखते हुये तो सभी को एक होकर भारत के विश्व गुरु बनने में मदद करनी चाहिए, क्योंकि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा से बढक़र देश का विकास पहले है ।