Flash Story
सरकार होम स्टे योजना को बढ़ावा देकर युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ रही है- महाराज
कैरेबियाई देश डोमिनिका ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित करने की घोषणा की
मुख्य सचिव ने की स्मार्ट मीटरिंग के कार्यों की समीक्षा 
मुख्यमंत्री धामी ने जौलजीबी मेला-2024 का किया शुभारंभ
टीरा’ ने जियो वर्ल्ड प्लाजा में लॉन्च किया लग्जरी ब्यूटी स्टोर
सुबह उठने पर महसूस होती है थकान? ऊर्जा के लिए खाएं ये 5 खाद्य पदार्थ
फिल्म स्टार मनोज बाजपेई को जमीन खरीदवाने के लिए ताक पर रख दिए गए नियम- कायदे 
बिना सत्र ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में नजर आई गहमागहमी
पराजय को सामने देख अब प्रपंच रच रही है कांग्रेस, जनता देख रही है इनकी कुटिलता और झूठे पैंतरे – रेखा आर्या

रिजर्व बैंक की 90 वर्षों की निरंतर मजबूती की गाथा

तमाल बंद्योपाध्याय
भारतीय रिजर्व बैंक ने सोमवार 1 अप्रैल को 90वें वर्ष में प्रवेश कर लिया। दुनिया के दो अन्य बैंक 90 से 99 वर्ष के बीच हैं। वे बैंक ऑफ अर्जेन्टीना और बैंक ऑफ कनाडा हैं जो 1935 में स्थापित हुए। केंद्रीय बैंकों का इतिहास 17वीं सदी का है जब 1668 में स्वीडिश रिक्सबैंक की स्थापना हुई। इसे एक संयुक्त स्टॉक कंपनी के रूप में सरकारी फंड्स को ऋण देने तथा कारोबारों के लिए क्लियरिंग हाउस के रूप में काम करना था। इसे केंद्रीय बैंक की शुरुआत माना जाता है।

कुछ दशक बाद 1694 में बैंक ऑफ इंगलैंड की स्थापना हुई। यह भी संयुक्त स्टॉक कंपनी के रूप में बना जिसे सरकारी डेट खरीदना था। 1800 में नेपोलियन बोनापार्ट ने बैंक डी फ्रांस की स्थापना की ताकि फ्रांसीसी क्रांति के दौरान कागजी मुद्रा की अत्यधिक मुद्रास्फीति को स्थिर किया जाए। बैंक ऑफ फिनलैंड की स्थापना 1812 में हुई। अमेरिकी फेडरल रिजर्व 1913 में स्थापित हुआ यानी स्विस नैशनल बैंक के सात वर्ष बाद। बैंक ऑफ जापान 1882 में स्थापित हुआ। आखिरकार 1998 में वर्तमान यूरोपीय केंद्रीय बैंक की स्थापना हुई ताकि यूरो की शुरुआत की जा सके।

समय के साथ केंद्रीय बैंकों की गतिविधियों में सुधार हुआ है। उदाहरण के लिए 1914 में पहला विश्व युद्ध शुरू होने से पहले केंद्रीय बैंकों ने घरेलू आर्थिक स्थिरता को बहुत महत्त्व नहीं देते थे। युद्ध ने रोजगार, गतिविधियों और मूल्य स्तर को लेकर चिंता उत्पन्न की। महामंदी के बाद एक बार फिर केंद्रीय बैंकिंग में बदलाव आया। फेड भी वित्त विभाग के अधीन हुआ और फिर 1951 में ही उसे स्वायत्तता मिल सकी। वापस रिजर्व बैंक पर लौटते हैं।

एक अप्रैल, 1935 को रिजर्व बैंक की स्थापना के बाद से वह 25 गवर्नरों के साथ काम कर चुका है। बेनेगल रामा राव 1 जुलाई, 1949 से 14 जनवरी, 1957 तक यानी साढ़े सात वर्षों तक इसके गवर्नर रहे जो अब तक किसी गवर्नर का सबसे लंबा कार्यकाल है। वहीं अमिताभ घोष महज 20 दिनों (15 जनवरी से 4 फरवरी, 1985 तक) तक गवर्नर रहे। रामा राव के इस्तीफे के बाद गवर्नर बने केजी अंबेगांवकर भी केवल छह सप्ताह तक पद पर रहे। बी एन आदरकर ने भी 4 मई, 1970 से 15 जून, 1970 तक लगभग इतनी ही अवधि तक गवर्नर पद संभाला।
1991 के आर्थिक सुधारों से अब तक आठ गवर्नर बने हैं जिनमें विमल जालान का 22 नवंबर, 1997 से 6 सितंबर, 2003 तक का कार्यकाल सबसे लंबा रहा जबकि एस वेंकटरमणन का कार्यकाल सबसे छोटा। वर्तमान गवर्नर शक्तिकांत दास दिसंबर में अपना दूसरा कार्यकाल पूरा होने के पहले ही कार्यकाल के मामले में जालान से आगे निकल जाएंगे। वह रामा राव के बाद दूसरे सबसे लंबे कार्यकाल वाले गवर्नर होंगे। वाईवी रेड्?डी ने पांच साल और ऊर्जित पटेल ने तीन वर्ष आठ महीने तक यह पद संभाला।

उदारीकरण के बाद के गवर्नरों की बात करें तो दास तमिलनाडु कैडर के 1980 के बैच के आईएएस अधिकारी हैं। उनके लिए यह सबसे चुनौतीपूर्ण दायित्व रहा है। कोविड 19 महामारी ने 5 लाख करोड़ डॉलर का आकार पाने का सपना देख रही अर्थव्यवस्था को मंदी में धकेल दिया। दास ने ब्याज दरों को ऐतिहासिक रूप से कम किया। इस असाधारण संकट को कई गैर पारंपरिक उपायों की मदद से हल करने का प्रयास किया गया।

वेंकटरमणन, जालान, डी सुब्बाराव और रघुराम राजन के सामने भी मुश्किल हालात आए। जालान तब गवर्नर बने जब पूर्वी एशियाई संकट चरम पर था और स्थानीय मुद्रा दिन ब दिन डूब रही थी। सुब्बाराव के कार्यकाल में ही अमेरिकी निवेश बैंक लीमन ब्रदर्स होल्डिंग इंक का पतन हुआ और वैश्विक वित्तीय संकट आया। राजन को अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा क्वांटिटेटिव ईजिंग रोकने के बाद ट्रेजरी प्रतिफल में आई तेजी, कमजोर रुपये, बढ़ते चालू खाते घाटे तथा उच्च मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ा।

1991 का उदारीकरण वेंकटरमणन के कार्यकाल के बीच हुआ। 1991 के भुगतान संतुलन के साक्षी रहे लोग मानते हैं कि सबसे मुश्किल कार्यकाल दास का नहीं बल्कि वेंकटरमणन का रहा। मेरा मानना है कि दोनों संदर्भ इतने अलग हैं कि तुलना करना सही नहीं। दास को कोविड-19 संकट का सामना तब करना पड़ा जब पूरी दुनिया आपस में गुंथी हुई थी और भारतीय अर्थव्यवस्था नॉमिनल जीडीपी के अनुसार दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। अब रिजर्व बैंक का एक अंतरराष्ट्रीय कद है। पूरी दुनिया के सामने एक ही चुनौती थी और विभिन्न केंद्रीय बैंकों ने तालमेल के साथ नीतियां बनाईं।

वेंकटरमणन का समय अलग था। भारत की अर्थव्यवस्था तब बहुत छोटी थी और उसे अकेले ही चुनौतियों से निपटना था। उस समय तो कुछ अमेरिकी विश्वविद्यालयों के फंड भी भारत के विदेशी मुद्रा भंडार से बड़े थे। रेड्?डी का कार्यकाल सबसे बेहतर था क्योंकि भारत ने उच्च वृद्धि और कम मुद्रास्फीति का दौर देखा। अपने कार्यकाल में उन्होंने नीतिगत दर बढ़ाना जारी रखा लेकिन ऋण और आर्थिक वृद्धि प्रभावित नहीं हुई। कई लोग कहते हैं कि यह जालान की विरासत थी। रेड्?डी ने नियामकीय मानकों को सख्त बनाया जो वैश्विक मानकों के कारण पहले से तंग थे। उन्होंने कई सुरक्षा उपाय किए जो 2008 के संकट के समय सुब्बाराव के लिए मददगार साबित हुए।

यदि 1991 के बाद के रिजर्व बैंक पर नजर डालें तो शायद ऐसी तस्वीर सामने आएगी: रंगराजन और उनके डिप्टी एसएस तारापोर मुद्रावादी थे। दोनों ने सरकार के साथ रिश्तों को बदला। जालान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक में सेवा दे चुके अर्थशास्त्री थे। वह जानते थे कि कैसे काम करना है। दास भी ऐसे ही हैं जबकि रेड्?डी को सबसे दिमागदार गवर्नर माना जाता है। वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग चाहता था कि रिजर्व बैंक को कई दायित्वों से मुक्त किया जाए। राजन ने इसका सफलतापूर्वक विरोध किया। इस बीच केंद्रीय बैंक ने पूरी तरह मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित किया। दास के कार्यकाल में उसने वृद्धि और मुद्रास्फीति का सराहनीय संतुलन किया, वित्तीय क्षेत्र को स्थिर बनाए रखा और व्यवस्था को मजबूती दी।

उपसंहार: यथास्थितिवादी नीति
मौद्रिक नीति समिति की 2024-25 की पहली बैठक जो शीघ्र होगी उसका नतीजा क्या होगा?
यथास्थिति बरकरार रहेगी यानी कोई कदम नहीं उठाया जाएगा। लगातार सातवीं बैठक में रीपो दर 6.5 फीसदी पर अपरिवर्तित रहेगी। वित्त वर्ष 25 के लिए सात फीसदी के वृद्धि अनुमान में भी कोई बदलाव नहीं आएगा। चालू वर्ष का वृद्धि अनुमान बढ़ाकर 7.3 फीसदी किया जा सकता है। कोर मुद्रास्फीति में कमी एक बड़ी राहत है लेकिन खाद्य मुद्रास्फीति चिंताजनक है। मॉनसून की भी इसमें भूमिका अहम होगी। हम आशावादी रह सकते हैं लेकिन हमें सतर्क भी रहना होगा। निकट भविष्य में दरों में कटौती की भी कोई संभावना नहीं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back To Top