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सबका साथ-सबका विकास की जमीनी हकीकत

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अजय दीक्षित
2014 में प्रधानमंत्री के रूप में मोदीजी ने पदभार संभालते ही सबका साथ-सबका विकास का नारा दिया और पूरी लगन से इस पर अमल भी किया और आज भी किया जा रहा है । कालांतर में इसमें सब का विश्वास और सब का प्रयास भी जोड़ दिया गया । परन्तु तेजी से अन्य पार्टियों के लोग भाजपा में शामिल हो रहे हैं और स्वयं भाजपा के कुछ प्रवक्ता इसमें पलीता लगा रहे हैं, उसे चिंता बढ़ रही है । इसी कारण पिछले दिनों मोदी जी ने न केवल भाजपा के अपितु सहयोगी दलों को सभी प्रवक्ताओं का बायोडाटा मांगा है ताकि स्क्रीनिंग की जा सके । यह जरूरी भी है क्योंकि अनेक प्रवक्ता पार्टी लाइन के बाहर या भडक़ाऊ या विपदा पैदा करने वाले बयान दे देते हैं । कई बार अन्य राजनैतिक दलों के नेताओं का नाम लेकर भी उनका मज़ाक उड़ाया जाता है । मोदीजी का नया नारा है पार्टी से बढक़र देश वे कहते हैं हमें 2047 में भारत को विश्व का सिरमौर बनाना होगा । उनके अनुसार पार्टियों का संघर्ष 2024 के चुनाव के बाद खत्म हो गया, अब हमें पार्टी लाइन से ऊपर उठकर देश के बारे में सोचना है । भारत में छ: ग्रुप अल्पसंख्यक माने जाते हैं — सिख, जैन, ईसाई, पारसी, मुसलमान और बौद्ध ।

इस समय केन्द्रीय मंत्रिमंडल में रवनीत सिंह व हरदीप पुरी सिख हैं । रामदास आठवले बौद्ध हैं । मंत्रिमंडल में ईसाई और जैन भी हैं । अब कोई पारसी मंत्रिमंडल में नहीं हैं । स्मृति ईरानी अमेठी से हारने के बाद अब उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली है । वैसे वे पारसी इस कारण हैं कि उन्होंने एक पारसी से शादी की है । परन्तु मंत्रिमंडल में कोई भी मुसलमान मंत्री नहीं है । असल में भाजपा का कोई भी सांसद मुसलमान नहीं हैं । यूं सहयोगी पार्टियों के कई सांसद मुसलमान हैं ।

असल में जमीनी स्तर पर कोई भेदभाव नहीं होता है । झुग्गी झोपड़ी वालों को फ्री घर मिलने में मुसलमान भी शामिल हैं । मुस्लिम महिलाओं को भी फ्री गैस सिलेण्डर मिला है । किसी भी सरकारी स्कीम में कोई भेदभाव नहीं है । परन्तु जब कांवड़ यात्रा के दौरान मस्जिदों और मज़ारों को ढंकने की बात आती है या मुसलमानों द्वारा हिन्दू देवी-देवताओं के नाम पर दुकान/होटल चलाने में आपत्ति होती है तो चिंता स्वाभाविक है । देश में ऐसा कोई कानून नहीं है कि कोई भी मुसलमान हिन्दू नाम नहीं रख सकता अपनी दुकान का। बात शुद्धता है। अनेक मुसलमानों ने कांवडिय़ों के लिए शिविर लगाये हैं । वे उन पर पुष्प वर्षा करते हैं । उग्र हिन्दुत्व से देश का भला नहीं होने वाला है।

आजकल संबित पात्रा का नाम सुनाई नहीं पड़ता । वे 2019 के लोकसभा चुनाव में पुरी (उड़ीसा) से हार गये थे । परन्तु 2024 में वे पुरी से जीत कर अब सांसद हैं । इसका एक बड़ा कारण यह है कि कांग्रेस की महिला उम्मीदवार ने अपना नाम वापिस ले लिया था । शायद संबित पात्रा उड़ीसा के मुख्यमंत्री बनना चाहते हों । उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में भी जगह नहीं मिली है । जो भी हो वे एक कुशल ई.एन.टी. सर्जन हैं । शायद फिर से प्रैक्टिस शुरू करें ।

असल में पार्टी लाइन की रक्षा के लिए सभी प्रवक्ताओं की स्क्रीनिंग बहुत जरूरी हैं । उनके लिए गाइड लाइन निर्धारित होनी चाहिए और अन्य पार्टियों के नेताओं पर अनर्गल भी नहीं बोलना चाहिए । पक्ष और विपक्ष में शत्रुता नहीं है । यह विचारधारा का अंतर है और प्रजातंत्र में वैचारिक मतभेद शुभ लक्षण है ।

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