एस. सुनील
ट्रंप का एक और भाषण जो भारत में बहुत प्रसारित हुआ उसमें उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठाया। ट्रंप ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर जो अत्याचार हो रहा है वह बर्बर है। दुनिया का कोई नेता, जब बांग्लादेश में प्रताडि़त हो रहे हिंदओं के पक्ष में खड़ा नहीं हुआ तो ट्रंप हुए। क्या यह कोई मामूली बात है? क्या इस पर भारत के लोगों को खुशी नहीं मनानी चाहिए?
डोनाल्ड ट्रंप लौट आए हैं। अमेरिका के इतिहास में 131 साल में वे पहले राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने कमबैक किया है। चार साल राष्ट्रपति रहने और फिर बेहद कड़वाहट भरे चुनाव में हार कर सत्ता से बाहर होने के बाद वापसी करके ट्रंप ने दिखाया है कि वे एक योद्धा हैं। उनके ऊपर महाभियोग चला। कई मुकदमे हुए। मुकदमे में सजा हुई। चुनाव प्रचार के दौरान उनके ऊपर गोली चली। लेकिन वे मैदान में डटे रहे और चुनाव जीता। रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने नतीजों के 24 घंटे से ज्यादा समय बीत जाने के बाद जब बधाई दी तो उनके साहस और योद्धा वाली भावना की तारीफ की और कहा कि वे ट्रंप के साथ यूक्रेन युद्ध पर बात करने के लिए तैयार हैं। ध्यान रखने की जरुरत है कि ट्रंप ने चुनाव प्रचार में कहा था कि वे राष्ट्रपति बनने के बाद एक घंटे में यूक्रेन का युद्ध रूकवा देंगे। ट्रंप की जीत के बाद पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलदोमीर जेलेंस्की दोनों उम्मीद कर रहे हैं कि वे युद्ध खत्म कराएंगे। अगर ऐसा होता है तो सोचिए यह दुनिया के लिए कितनी राहत की बात होगी!
दुनिया का हर देश ट्रंप के लौटने को अपने हिसाब से देख रहा है और उस पर प्रतिक्रिया दे रहा है। यूरोप के देशों खास कर फ्रांस और जर्मनी की प्रतिक्रिया सधी हुई लेकिन आशंका वाली थी। ट्रंप के आने के बाद इमैनुएल मैक्रों और ओलाफ शुल्ज दोनों यूरोपीय संघ की एकजुटता की बात कर रहे हैं। ब्रिटेन की प्रतिक्रिया सामान्य थी लेकिन सबको पता है कि लेबर प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को कोई बड़े प्रशंसक नहीं हैं। चीन के राष्ट्रपति ने तो उनको जीत पर निजी तौर पर बधाई ही नहीं दी। कुल मिला कर दुनिया के दो देश ऐसे हैं, भारत और इजराइल, जिनकी प्रतिक्रिया वास्तविक अर्थों में ट्रंप की जीत पर खुशी और संतोष वाली थी। इसी खुशी और संतोष के अंदाज में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘अपने दोस्त डोनाल्ड ट्रंप’ को बधाई दी। नतीजों के तुरंत बाद उन्होंने बधाई दी और उसके थोड़ी देर बाद दोनों की बातचीत भी हुई, जिसकी जानकारी खुद प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर दी।
आश्चर्य नहीं है कि डोनाल्ड ट्रंप की जीत पर आम भारतीय नागरिकों ने भी खुशी मनाई। भारत के लोगों ने उनके भाषणों के वीडियो शेयर किए। उनके दो भाषण सबसे ज्यादा शेयर किए गए। अपने एक भाषण में ट्रंप ने कहा कि, ‘मैं हिंदुओं का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं। मैं भारत का बहुत बड़ा प्रशंसक हूं। अगर मैं चुनाव जीता तो हिंदुओं का, भारतीयों का एक सच्चा दोस्त व्हाइट हाउस में होगा’। उन्होंने आगे कहा, ‘भारतीय हिंदुओं की कई पीढिय़ों ने हमारे देश अमेरिका को मजबूत बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है’। अमेरिका में राष्ट्रपति के चुनाव के 256 साल के इतिहास में किसी राष्ट्रपति ने भारत और हिंदुओं के बारे में इतनी सकारात्मक, सार्थक और अच्छी बातें नहीं कही हैं। ट्रंप का एक और भाषण जो भारत में बहुत प्रसारित हुआ उसमें उन्होंने बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार का मुद्दा उठाया। ट्रंप ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदुओं पर जो अत्याचार हो रहा है वह बर्बर है। दुनिया का कोई नेता, जब बांग्लादेश में प्रताडि़त हो रहे हिंदओं के पक्ष में खड़ा नहीं हुआ तो ट्रंप हुए। क्या यह कोई मामूली बात है? क्या इस पर भारत के लोगों को खुशी नहीं मनानी चाहिए?
ट्रंप की जीत पर भारतीयों के खुशी मनाने के एक नहीं कई कारण हैं। एक कारण तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके निजी संबंध बहुत अच्छे हैं। वे हमेशा प्रधानमंत्री की तारीफ करते रहे हैं और कई मौकों पर कहा है कि भारत के हितों की रक्षा के लिए नरेंद्र मोदी कुछ भी कर सकते हैं। दोनों नेताओं के निजी संबंधों की केमिस्ट्री कैसी है यह टेक्सास के ह्यूस्टन में हुए ‘हाउडी मोदी’ और अहमदाबाद में हुए ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम में दिखा। एक कार्यक्रम में अमेरिका में मोदी, मोदी के नारे लगे थे तो दूसरे में भारत में ट्रंप, ट्रंप के नारे लगे थे। दुनिया के दो सबसे बड़े और जीवंत लोकतांत्रिक देशों के नेताओं के हित एकाकार हो गए दिखते हैं। ट्रंप की जीत और प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के साथ उनके प्रगाढ़ संबंधों से इस बात की गारंटी है कि अब दुनिया में कहीं भी भारत के और हिंदुओं के हितों को नुकसान पहुंचाने वालों की खैर नहीं होगी।
दुनिया जानती है कि आतंकवाद से सबसे ज्यादा पीडि़त देश भारत है। भारत का एक पड़ोसी देश दशकों से छद्म युद्ध छेड़े हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा और मजबूत होती आर्थिकी से परेशान अनेक वैश्विक ताकतें भारत विरोधी गतिविधियों में जुट गई हैं। अमेरिका से लेकर ब्रिटेन और कनाडा तक की सरजमीं से भारत विरोधी गतिविधियां संचालित की जा रही हैं। भारत के टुकड़े टुकड़े करने की इच्छा रखने वालों को मदद दी जा रही है। अलगाववादियों को शरण मिल रही है। डोनाल्ड ट्रंप की आतंकवाद पर सख्त नीति से ऐसी गतिविधियों पर लगाम लगेगी। कनाडा और अमेरिका में बैठ कर भारत के खिलाफ अभियान चलाने वाली ताकतें कमजोर होंगी। अलगाववादियों के प्रत्यर्पण का रास्ता भी साफ होगा। अमेरिका से हाल के दिनों में जो तनाव बना था उसमें कमी आएगी।
अमेरिका के बाद कनाडा में सत्ता परिवर्तन की बारी है। डोनाल्ड ट्रंप के सबसे मुखर समर्थक और दुनिया के सबसे अमीर उद्योगपति इलॉन मस्क ने कहा है कि अगले चुनाव में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो हारेंगे। गौरतलब है कि मस्क ने ट्रंप के समर्थन में अपना सब कुछ दांव पर लगाया था। दुनिया के किसी कारोबारी ने कभी भी राजनीति में जो नहीं किया होगा वह मस्क ने किया। उन्होंने ट्रंप के प्रचार में करोड़ों डॉलर खर्च किए। मस्क ने ही अर्ली वोटिंग में हर दिन एक मतदाता को 10 लाख डॉलर देने का ऐलान करके ट्रंप का माहौल बनाया। तभी पांच नवंबर को हुए मतदान से पहले ही अर्ली वोटिंग में आठ करोड़ से ज्यादा वोट पड़े और ट्रंप के जीतने का आधार पहले ही बन गया था। अभिव्यक्ति की आजादी, निर्बाध व्यापार की स्वतंत्रता, लोकतंत्र के लिए प्रतिबद्धता और आतंकवाद विरोध के विचार में मस्क ने ट्रंप का साथ दिया। इसी सोच में वे कनाडा में ट्रूडो सरकार की विदाई का बंदोबस्त भी करेंगे। सोचिए यह भारत के लिए कितनी सुखद बात होगी कि अपनी मूर्खता और स्वार्थ से भरी राजनीति में भारत और कनाडा के संबंधों को तहस नहस करने वाले जस्टिन ट्रूडो विदा होंगे।
डोनाल्ड ट्रंप ने हमेशा पाकिस्तान को एक मवाली मुल्क माना है। उन्होंने राष्ट्रपति रहते उसकी मदद रोक दी थी। जो बाइडेन के शासन में फिर से पाकिस्तान को मदद मिलनी शुरू हुई है। लेकिन अब इस बात की पूरी संभावना है कि डोनाल्ड ट्रंप के राज में पाकिस्तान फिर अलग थलग होगा। उसे अमेरिका से कोई मदद नहीं मिलेगी। इतना ही विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष यानी आईएमएफ जैसी संस्थाओं से भी पाकिस्तान को जो मदद मिल रही है वह बंद होगी। यह सामान्य सामरिक समझ की बात है कि अगर पाकिस्तान को मिलने वाली आर्थिक मदद बंद होती है तो उसके यहां फल फूल रहे आतंकवाद के नेटवर्क की कमर टूटेगी, जिसका सबसे बड़ा फायदा भारत को होगा। इससे भारत के खिलाफ चल रहा छद्म युद्ध कमजोर पड़ेगा। इसी तरह राष्ट्रपति बनने के बाद ट्रंप पहले कार्यकाल की तरह इजराइल और अरब के देशों के बीच संबंधों को सामान्य करने का प्रयास करेंगे। अगर अमेरिका, इजराइल और अरब देशों के संबंध सामान्य होते हैं तो यह भारत के लिए सामरिक और आर्थिक दोनों नजरिए से अच्छा होगा।
रूस और चीन के साथ ट्रंप के संबंध उलझे हुए हैं। परंतु इस उलझाव के बावजूद वे जो भी नीति अख्तियार करेंगे उससे भारत को फायदा ही होगा। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने जिस तरह से ट्रंप के प्रति रुख दिखाया है उससे लगता है कि रूस और अमेरिका के संबंधों में भी सामान्यीकरण की शुरुआत होगी। बाइडेन प्रशासन में दोनों के संबंध तनाव वाले रहे। तभी भारत के लिए भी अपने पुराने और आजमाए हुए दोस्त रूस के साथ कारोबारी या सामरिक संबंधों में मुश्किलें आईं। पिछले ही दिनों खबर आई कि अमेरिका ने भारत की 19 कंपनियों को इसलिए काली सूची में डाल दिया क्योंकि वे रूस के साथ कारोबार कर रही थीं। ट्रंप के कार्यकाल में इस तरह की घटनाएं नहीं होंगी। इससे रूस के साथ भारत के आर्थिक और रक्षा संबंध मजबूत होंगे। इसी तरह ट्रंप कह चुके हैं कि वे चीनी उत्पादों पर दो सौ फीसदी आयात शुल्क लगाएंगे। चीन जो दुनिया की फैक्टरी बना हुआ है, उसका यह स्टैटस ट्रंप खत्म करना चाहेंगे और ऐसे में उनकी व दुनिया की पहली पसंद भारत होगा। अगर चीन से व्यापार में कमी आती है तो भारत के साथ व्यापार बढ़ सकता है। भारत में सेमी कंडक्टर सहित दूसरे उत्पादों के निर्माण की नई इकाइयों के लिए भी रास्ता बनेगा।
अगर सामरिक मामले की बात करें तो अमेरिका के साथ भारत के संबंध अब भी अच्छे हैं। हाल ही में भारत ने अमेरिका से 32 हजार करोड़ रुपए की हथियार खरीद का समझौता किया है। भारत 31 प्रिडेटर ड्रोन खरीद रहा है। परंतु ट्रंप के शासन में भारत को अमेरिका का विशेष लड़ाकू विमान एफ 35 भी मिल सकता है। राफेल के बाद अगर एफ 35 लड़ाकू विमान भारत को मिलता है तो भारत की वायु प्रतिरक्षा ताकत कितनी बढ़ जाएगी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। क्वाड से लेकर फाइव आइज देशों के साथ भारत के संबंध बेहतर होंगे और इन देशों के साथ खुफिया सूचनाओं की साझेदारी भी बढ़ेगी। सो, हिंदू हितों की बात हो या भारत की आर्थिक, सामरिक या कूटनीतिक ताकत का मामला हो, ट्रंप हर मोर्चे पर भारत के सच्चे मित्र साबित होंगे।